अगर आप इलेक्ट्रिकल से जुड़े हुए है, तो आपने इलेक्ट्रिकल इंटरलॉकिंग का नाम तो जरूर सुना होगा। क्योकि इंडस्ट्री में जब कभी दो कॉन्टैक्टर से मोटर को ऑपरेट करने की बात आती है, तो अक्सर कहा जाता है की कॉन्टैक्टर को इंटरलॉक करना चाहिए।
तो अब सवाल आता है, की आखिर इंटरलॉकिंग क्या होती है, और यह इतनी जरुरी क्यों है? तो दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम इंटरलॉकिंग को अच्छे से समझेगे और इसके साथ ही हम कॉन्टैक्टर की इंटरलॉकिंग वायरिंग कैसे करते है, उसको भी सर्किट-डायग्राम की मदत से समझ लेंगे। ताकि अगर भविष्य में आपके सामने इंटरलॉक से जुड़ा कोई सवाल आये तो आप उसका आसानी से जवाब दे सके और अगर कभी वायरिंग करनी पड़े तो भी आप बिना किसी की मदत के खुद से कॉन्टैक्टर को इंटरलॉक कर पाए।
इंटरलॉकिंग क्या होती है?
What is interlocking?
अगर हम स्टार्टिंग में इंटरलॉकिंग की बात करते है, की इंटरलॉकिंग क्या होती है? तो इसका मतलब यह है की हमारी मोटर के साथ दो कॉन्टैक्टर जुड़े हुए है और एक कॉन्टैक्टर ऑन है, अब अगर हम दूसरे कॉन्टैक्टर को ऑन करते है, तो हमारा दूसरा कॉन्टैक्टर ऑन नहीं होगा। यानी की एक समय में एक ही कॉन्टैक्टर ऑन रहेगा। मतलब की दोनों कॉन्टैक्टर एक साथ ऑन ना हो, इसे ही हम कॉन्टैक्टर की इंटरलॉकिंग कहते है।
इसी तरह इंटरलॉकिंग का उपयोग ACB में भी होता है। अगर हम मोटर के स्टार्टर की बात करे तो आपको रिवर्स फॉरवर्ड और स्टार-डेल्टा स्टार्टर मे इंटरलॉकिंग का सबसे ज्यादा उपयोग देखने को मिलता है। अब आखिर इंटरलॉकिंग कैसे करते है उसको समझ लेते है।
इंटरलॉकिंग कैसे करते है?
How to do interlocking?
अगर हम इंटरलॉकिंग की बात करें तो ACB और Contactor दोनों में इंटरलॉकिंग एक ही तरह से करते है। इंटरलॉकिंग को आसानी से समझने के लिए मान लीजिये की हमारे पास दो कॉन्टैक्टर है, दोनों को ही आपस में इंटरलॉक करना है। मतलब की एक कॉन्टैक्टर ऑन हो तो दूसरे कॉन्टैक्टर को हम चाहकर भी ऑन ना कर पाए और अगर दूसरा कॉन्टैक्टर ऑन हो तो पहले कॉन्टैक्टर को ऑन ना कर पाए।
इलेक्ट्रिकल का जो भी लोड होता है, उसको स्टार्ट करने के लिए हमारे सप्लाई टर्मिनल होते है। जैसे हम कॉन्टैक्टर की बात करे तो उसे A1, A2 टर्मिनल से ऑपरेट करते है। निचे इमेज में आप देख सकते है की किस तरह से कॉन्टैक्टर में हमारे A1, A2 टर्मिनल होते है।
अगर यह कॉन्टैक्टर 220 वोल्ट की सप्लाई पर ऑन होता है और हम A1, A2 पर 220 वोल्ट की सप्लाई देते है तो कॉन्टैक्टर ऑन हो जाता है। इस 220 वोल्ट के फेज को हम A1 पर और न्यूट्रल को A2 पर लगा देते है।
दोस्तों उदारहण के लिए मान लेते है की हमारे पास दो कॉन्टैक्टर है और ये एक मोटर से कनेक्ट है। यह दोनों ही कॉन्टैक्टर 220 वोल्ट से ऑपरेट होते हैं, तो इन दोनों कॉन्टैक्टर को हम डायरेक्ट सप्लाई से जोड़ देते है।
अब हमारे पास तीन स्विच है जैसे की आप ऊपर फोटो में देख सकते है। दो स्विच से तो हम दोनों कॉन्टैक्टर को ऑन करते है और एक स्विच से हम दोनों कॉन्टैक्टर को ऑफ कर लेते है।
जैसे की ऊपर फोटो में देख सकते है, की एक फेज वायर रेड बटन से होकर दोनों ON बटन के अंदर जाता है, अब अगर हम नार्मल वायरिंग की बात करे तो उसमे पहले स्विच से हमारा फेज वायर कॉन्टैक्टर के A1 टर्मिनल में जोड़ देते है, तो अब जैसे ही स्विच ऑन करंगे हमारा पहला कॉन्टैक्टर ऑन हो जाता है।
अब जब हमे इंटरलॉकिंग करनी है तो, जो हमारी फेज वायर स्विच से डायरेक्ट आ रही थी उसे डायरेक्ट कॉन्टैक्टर में ना देकर हम पहले स्विच के फेज वायर को दूसरे कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल में जोड़ देंगे जिसे आप निचे फोटो में आसानी से समझ सकते है।
इसके बाद में दूसरे कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल के आउटपुट को हम पहले कॉन्टैक्टर के A1 टर्मिनल से जोड़ देते है। इस तरिके से हमारे पहले कॉन्टैक्टर की इंटरलॉकिंग पूरी हो चुकी है।
अब ऐसे ही हम दूसरे कॉन्टैक्टर के साथ इंटरलॉकिंग करने वाले है। दूसरे स्विच से जो फेज वायर निकलेगा वो पहले कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल से जोड देंगे और पहले कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल के आउटपुट को हम दूसरे कॉन्टैक्टर के A1 टर्मिनल से जोड़ देते है।
और इस तरह जोड़ते ही दोस्तों हमारे दोनों कॉन्टैक्टर आपस में इंटरलॉक हो चुके है। अब अगर पहले कॉन्टैक्टर को ऑन कर देते है तो हम चाहकर भी दूसरे कॉन्टैक्टर को ऑन नहीं कर सकते। इसी तरह अगर हमारा दूसरा कॉन्टैक्टर ऑन है, तो हम चाहकर भी पहले कॉन्टैक्टर को ऑन नहीं कर सकते।
तो दोस्तों अब आपने यह तो समझ लिया की आखिर हम इंटरलॉकिंग किस तरह से करते है, लेकिन यदि कभी आपसे इंटरव्यू में पूछ लिया जाए की आखिर इंटरलॉकिंग कैसे काम करती है? तो आप कैसे जवाब देंगे, वह भी जल्दी से जान लेते है।
इंटरलॉकिंग कैसे काम करती है?
How interlocking works?
दोस्तों आपको एक बात हमेशा ध्यान में रखनी है, की जब कभी हमारा कॉन्टैक्टर ऑन होता है, तो कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल ओपन हो जाते है। यानी की NC टर्मिनल से कोई करंट फ्लो नहीं होता।
अब जब कभी हम पहले स्विच को ऑन करते है, तो सप्लाई स्विच से सीधे दूसरे कॉन्टैक्टर के NC में जाती है। अब अगर दूसरा कॉन्टैक्टर ऑन नहीं है, तो उस केस में NC टर्मिनल से सप्लाई पहले कॉन्टैक्टर के A1 टर्मिनल में जायेगी और पहला कॉन्टैक्टर ओन हो जाएगा।
अब अगर पहला कॉन्टैक्टर ओन है, और हम दूसरे स्विच को दबाते है तो दूसरे स्विच से सप्लाई पहले कॉन्टैक्टर के NC टर्मिनल में जाएगी और जैसा हमने ऊपर बताया था की अगर कॉन्टैक्टर ओन है तो NC टर्मिनल ओपन हो जायेगा और करंट आगे फ्लो नहीं होगी।
इसलिए अगर पहला कॉन्टैक्टर ऑन है, और हम दूसरा बटन दबाते है, तो भी दूसरा कॉन्टैक्टर ओन नहीं होगा। क्योकि पहला कॉन्टैक्टर ओन होने के कारण उसके NC टर्मिनल ओपन रहेंगे, और दूसरे कॉन्टैक्टर में कोई करंट फ्लो नहीं होगी। इसलिए दूसरा कॉन्टैक्टर तब तक ऑपरेट नहीं होगा जब तक पहला कॉन्टैक्टर ओन है।
तो दोस्तों उम्मीद है की आपको इंटरलॉकिंग क्या होती है इसके बारे में पूरी जानकारी मिल गयी होगी। अगर अभी भी कोई सवाल रह जाता है तो आप इस पोस्ट के नीचे कमेंट करके बता सकते है या फिर हमे इंस्टाग्राम “Electrical Dost” पर भी अपना सवाल भेज सकते है।
अगर आपको इलेक्ट्रिकल की वीडियो देखना पसंद है तो आप हमारे चैनल “Electrical Dost” पर विजिट कर सकते है।
मिलते है अगली पोस्ट में तब तक के लिए धन्यवाद 🙂